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ट्रस्टी परिचय
जननी जणै तो दोय जण के दाता शूर
नहीं तो बांझ रह जाइजे, मती गंवाजे नूर
नहीं तो बांझ रह जाइजे, मती गंवाजे नूर
इतिहास साक्षी है शेखावाटी शूरवीरों की धरती है, संतों की तपोभूमि है। विद्वानों की यशोभूमि है, धन कुबेरों की जन्म भूमि है। सदियों से यहां के दूरदर्शी परिश्रमी व कष्ट सहिष्णु अग्रवाल सेठों ने देश-देशांतर की दुर्गम यात्राएं कीं। आसाम, कलकता, बंबई, बर्मा, रंगून दूर-दूर तक वे गए, वहां परिश्रम व समझदारी से विपुल धन कमाया परंतु, अपनी जन्मभूमि को नहीं भूले। जब भी वे देश आते तो यहां की समस्याओं, अभावों एवं यहां की आवश्यकताओं को देखते-समझते और समाधान, निराकरण व पूर्ति करते।
शेखावाटी के हर कोने में बनी धर्मशालाएं, कुएं, बावड़ी, छतरी, गौशाला, अनाथालय, मंदिर, पाठशाला, स्कूल, कॉलेज, औषद्यालय, अस्पताल, ऋषिकुल व बगीचियां उनकी मानव-सेवा एवं जन्मभूमि के प्रति प्रेम की उत्कृष्ट गाथाएं हैं। इतिहास के पृष्ठों पर सहजे-सिमटे अमिट साक्ष्य हैं।
तब से अब तक गंगा में काफी पानी बह चुका है, समय में काफी परिवर्तन आ गया है। इस समय में भी एक ऐसा सरल हृदय, परम गंभीर मेधावी व्यक्ति है जो लगता अत्यंत साधारण है पर चरित्र व जनसेवा में असाधारण है। कलकता, बम्बई, सूरत में व्यापारिक प्रतिष्ठान हैं पर परिश्रम से उपार्जित धन को अपनी जन्मभूमि के विकास कार्यों में लगाना ही उसका ध्येय है। व्यक्तित्व इतना सरल कि कोई अनुमान नहीं कर सकता कि इस व्यक्ति ने जनसेवा में करोड़ों रूपये दान कर दिए होंगे।
सादगी व स्वाभिमान इतना कि वर्ष में लगातार तीन-चार महीने फतेहपुर रहना पर घुटनों में दर्द होते हुए भी पैदल पूरे शहर में भ्रमण करना। ऐसे यशस्वी व्यक्ति हैं स्वर्गीय श्री हनुमान प्रसाद जी धानुका के सपुत्र श्री राधेश्याम धानुका।
राधेश्याम धानुका का जन्म फतेहपुर-शेखावाटी में 18 नवम्बर, 1933 को हुआ। बाल्यकाल फतेहपुर में ही बीता और यहां की परिस्थितियों व समस्याओं को बहुत नजदीक से देखा, समझा और हृदयंगम किया।
प्रारंभ से ही प्रगतिशील विचारधारा के श्री राधेश्याम धानुका व्यवस्था पसंद व्यक्ति रहे हैं। सन् 1955 में मात्र 22 वर्ष की उम्र में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने फतेहपुर में व्यापार संघ्ा की स्थापना की। तब इस बात की कोई कल्पना ही नहीं करता था। रामकुमार दूधवाले के ऊपर के मकान का पूरा भाग व्यापार संघ को देकर कार्यालय बनाया जो आज भी चालू है। उस समय शिक्षा भी कम थी, वकील भी कम थे। अत: व्यापारियों की समस्याओं का खुद ध्यान देकर हल करवाते। बिक्री कर व आयकर संबंधी कोई परेशानी जब तक वे फतेहपुर में रहे, किसी भी व्यापारी को नहीं होने दी।
श्री राधेश्याम धानुका अपनी दादी के बहुत लाडले रहे। दादी का सन् 1960 में देहांत हो गया तो उनका मन उखड़ गया। राधेश्याम जी व्यापार छोड़कर अपने ताऊजी श्री शंकरलाल जी धानुका के पास चले गए। जिनके ये दत्तक पुत्र भी हैं।
श्री राधेश्यामजी गौसेवा को भगवान की प्रत्यक्ष सेवा मानते हैं। इसी भावना व प्ररेणा से सन् 1965 में हरसावा मोड़ पर उन्होंने फतेहपुर पिंजरापोल हेतु पपिंग सेट आदि से युक्त गहरा कुआं बनवाया, बिजली लगवाई और ऐसी व्यवस्था की कि 24 घंटे लगातार पानी आ सके व पिंजरापोल में चारा तथा घास की खेती की जा सके।
सन् 1970 में फतेहपुर के मुख्य बाजार में भी सड़क नहीं थी, कच्चा रास्ता था। कलकता में सड़कें थी, मन में प्रेरणा हुई कि मुख्य बाजार में जहां जन-जन के आराध्य भगवान श्री लक्ष्मीनाथ का मंदिर भी है, सड़क बनवाई जाए। अत: सीकरिया चौरास्ते से भोलाजी हलवाई की दुकान तक लम्बी सड़क अपने व्यय से बनवाई।
उसी समय इनके मन में एक और महत्वपूर्ण जनसेवा की बात आई। शहर के उत्तर में तो भरतिया अस्पताल था पर दक्षिण-पूर्व में चिकित्सा सुविधा नाम की भी नहीं थी। आपने मन में एक बड़ा अस्पताल बनाने की ठान ली तथा 19 अगस्त, 1970 को राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल सुखाडि़या से अपनी गोद की स्वर्गीया मां की स्मृति में श्रीमती कृष्णादेवी शंकरलाल धानुका चिकित्सालय का शिलान्यास करवाकर तीव्र गति से काम शुरू कर दिया।
1971 में उस समय की राष्ट्रीय राजनीति के दिग्गज भारत सरकार के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री श्री उमाशंकर दीक्षित (शीला दीक्षित के पिता) से इस अस्पताल का उदघाटन करवाया। इससे दीक्षित जी बहुत प्रभावित हुए और धानुका जी ने उनके आग्रह पर एक विपुल धनराशि सहित यह सुसज्जित अस्पताल राज्य सरकार को दे दिया। पर यह नहीं की उसे राजकीय अस्पताल बनाकर अपने हाल पर छोड़ दें व भूल जाएं। हर वर्ष व्यवस्थाओं पर अपनी ओर से लाखों रूपये खर्च करने के अलावा सन् 1987 में 10 लाख रूपये लगाकर अंतरंग चिकित्सालय (इनडोर) की 20 शैयाएं और बढ़वाई। सन् 1997 में पुन: 20 लाख रूपये लगाकर एक पूरा अलग विंग, डॉक्टरों के कक्ष व 20 शैयाओं की व्यवस्था करवाई।
भारतीय संस्कृति के अनन्य पोषक श्री धानुका परम मातृ भक्त हैं। मातृदेवो भव: पितृ देवो भव: उनके लिए मात्र उदघोष नहीं, अनुशीलन है। असर नहीं आत्मा है। जिनके गोद चले गए उस मां कृष्णा देवी की स्मृति में अस्पताल बनाया तो जन्मदात्री मां की स्मृति में अस्पताल के सामने ही एक सुंदर-उपयोगी धर्मशाला 'श्रीमती मिन्नीदेवी हनुमानप्रसाद धानुका धर्मशाला' का निर्माण 1984 में रोगियों के साथ आने वाले परिवारजनों की सुविधा हेतु करवाया।
श्री धानुका अच्छे समाज सेवी हैं तो कुशल संगठक भी। आम आदमी से लेकर बड़े उद्योगपति तक इनका सम्मान करते हैं, सलाह मानते हैं। अग्रसेन भवन के लिए जगह की बात आई, तो आपने कलकता में सेठ श्री नंदलाल जी भौतिका को अपनी जगह समाज को अर्पित करने के लिए तैयार किया व समाज के नाम रजिस्ट्री करवा दी। धन संग्रह तो करवाया ही, अपनी तरफ से भी 5,50,000 रूपये प्रदान किए। आज उसी जगह उच्च स्थापत्य कला का प्रतीक चित्ताकर्षण, नयनाभिराम, संपूर्ण सुविधाओं से युक्त श्री अग्रसेन भवन का निर्माण हुआ, एक सपना साकार हुआ।
श्री धानुका को इतने से ही संतोष नहीं हुआ। वे दूर तक की सोचते हैं। इस भवन के साथ अन्य कई सुविधाओं के लिए एक अतिथि गृह, पाकशाला, जेनरेटर व जेनरेटर कक्ष तथा गैरेज आदि की जरूरत को समझते हुए समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ फतेहपुर के श्री रामावतार रामसीसरिया से कहा , जिन्होंने इनके आग्रह को मानते हुए बिना एक क्षण के विलम्बर के यह सब काम संपूर्ण रूप से अपने व्यय पर कराने की स्वीकृति देते हुए काम करवाया। आपका यह चुम्बकीय व्यक्तित्व ही है।
श्री राधेश्यामजी धानुका न केवल अपने व्यापार में दक्ष हैं वरन भारत के गिने-चुने व्यक्तियों में आपकी गणना होती है। सन् 1968 से आज तक आप निरंतर भारत सरकार के जवाहरातों के मूल्यांकनकर्ता हैं। जटिल से जटिल मूल्यांकनों को पूरी दक्षता से करते हैं तथा पूर्वी अंचल में तो वे इस क्षेत्र के बेजोड़ व्यक्ति हैं। इनकी विश्वसनीयता इतनी है कि 1992 से 1996 तक कवे डायमंड मर्चेण्ट एसोसिएशन, कलकता के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। 1992 से आप जौहरी बाजार धर्मकांटा एसोसिएशन, कलकता के सेक्रेटरी हैं।
आपके कलकता, बम्बई, सूरत में जवाहरातों के प्रतिष्ठान हैं और इस मामले में बड़े भाग्यशाली हैं कि उनके दो पुत्र हैं और दोनों ही जवाहरात के मामले में अपना सानी नहीं रखते। दोनों भारत सरकार के पंजीकृत व अनुमोदित मूल्यांकनकर्ता है। बड़े श्री अरूण जहां कलकता को काम संभालते हैं वहीं छोटे श्री राजेन्द्र बंबई तथा सूरत का। दोनों ही वाणिज्य स्नातक हैं। पितृभक्ति इतनी कि पिता का एक इशारा उनके लिए जीवन की सर्वाधिक महत्व की बात बन जाती है। श्री धानुका के आदर्श उनकी वाणी में ही नहीं कर्म में भी कूट-कूटकर भरे हैं।
करोड़ों रूपये जनसेवा में दान करने वाले इस करोड़पति सेठ ने अपने सुंदर व सुयोग्य पुत्रों को विवाह अत्यंत सादगी व साधारण ढंग से किया ही अपितु एक पैसा भी दहेज में न लेकर समाज के सामने एक अनुकरणीय उदाहरण भी दिया है।
मस्तमौला धानुका की सबसे बड़ी शक्ति उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मैना देवी, नाम के अनुसार ही बहुत मधुरभाषिणी, अत्यंत सरल स्वभाव की धार्मिक महिला है। अपने पति की दु:ख-सुख की संगिनी तो हैं ही, उनकी धर्मपरायणता व दानशीलता की अभिवृद्धि की मूल प्रेरणा भी।
तब से अब तक गंगा में काफी पानी बह चुका है, समय में काफी परिवर्तन आ गया है। इस समय में भी एक ऐसा सरल हृदय, परम गंभीर मेधावी व्यक्ति है जो लगता अत्यंत साधारण है पर चरित्र व जनसेवा में असाधारण है। कलकता, बम्बई, सूरत में व्यापारिक प्रतिष्ठान हैं पर परिश्रम से उपार्जित धन को अपनी जन्मभूमि के विकास कार्यों में लगाना ही उसका ध्येय है। व्यक्तित्व इतना सरल कि कोई अनुमान नहीं कर सकता कि इस व्यक्ति ने जनसेवा में करोड़ों रूपये दान कर दिए होंगे।
सादगी व स्वाभिमान इतना कि वर्ष में लगातार तीन-चार महीने फतेहपुर रहना पर घुटनों में दर्द होते हुए भी पैदल पूरे शहर में भ्रमण करना। ऐसे यशस्वी व्यक्ति हैं स्वर्गीय श्री हनुमान प्रसाद जी धानुका के सपुत्र श्री राधेश्याम धानुका।
राधेश्याम धानुका का जन्म फतेहपुर-शेखावाटी में 18 नवम्बर, 1933 को हुआ। बाल्यकाल फतेहपुर में ही बीता और यहां की परिस्थितियों व समस्याओं को बहुत नजदीक से देखा, समझा और हृदयंगम किया।
प्रारंभ से ही प्रगतिशील विचारधारा के श्री राधेश्याम धानुका व्यवस्था पसंद व्यक्ति रहे हैं। सन् 1955 में मात्र 22 वर्ष की उम्र में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने फतेहपुर में व्यापार संघ्ा की स्थापना की। तब इस बात की कोई कल्पना ही नहीं करता था। रामकुमार दूधवाले के ऊपर के मकान का पूरा भाग व्यापार संघ को देकर कार्यालय बनाया जो आज भी चालू है। उस समय शिक्षा भी कम थी, वकील भी कम थे। अत: व्यापारियों की समस्याओं का खुद ध्यान देकर हल करवाते। बिक्री कर व आयकर संबंधी कोई परेशानी जब तक वे फतेहपुर में रहे, किसी भी व्यापारी को नहीं होने दी।
श्री राधेश्याम धानुका अपनी दादी के बहुत लाडले रहे। दादी का सन् 1960 में देहांत हो गया तो उनका मन उखड़ गया। राधेश्याम जी व्यापार छोड़कर अपने ताऊजी श्री शंकरलाल जी धानुका के पास चले गए। जिनके ये दत्तक पुत्र भी हैं।
श्री राधेश्यामजी गौसेवा को भगवान की प्रत्यक्ष सेवा मानते हैं। इसी भावना व प्ररेणा से सन् 1965 में हरसावा मोड़ पर उन्होंने फतेहपुर पिंजरापोल हेतु पपिंग सेट आदि से युक्त गहरा कुआं बनवाया, बिजली लगवाई और ऐसी व्यवस्था की कि 24 घंटे लगातार पानी आ सके व पिंजरापोल में चारा तथा घास की खेती की जा सके।
सन् 1970 में फतेहपुर के मुख्य बाजार में भी सड़क नहीं थी, कच्चा रास्ता था। कलकता में सड़कें थी, मन में प्रेरणा हुई कि मुख्य बाजार में जहां जन-जन के आराध्य भगवान श्री लक्ष्मीनाथ का मंदिर भी है, सड़क बनवाई जाए। अत: सीकरिया चौरास्ते से भोलाजी हलवाई की दुकान तक लम्बी सड़क अपने व्यय से बनवाई।
उसी समय इनके मन में एक और महत्वपूर्ण जनसेवा की बात आई। शहर के उत्तर में तो भरतिया अस्पताल था पर दक्षिण-पूर्व में चिकित्सा सुविधा नाम की भी नहीं थी। आपने मन में एक बड़ा अस्पताल बनाने की ठान ली तथा 19 अगस्त, 1970 को राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल सुखाडि़या से अपनी गोद की स्वर्गीया मां की स्मृति में श्रीमती कृष्णादेवी शंकरलाल धानुका चिकित्सालय का शिलान्यास करवाकर तीव्र गति से काम शुरू कर दिया।
1971 में उस समय की राष्ट्रीय राजनीति के दिग्गज भारत सरकार के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री श्री उमाशंकर दीक्षित (शीला दीक्षित के पिता) से इस अस्पताल का उदघाटन करवाया। इससे दीक्षित जी बहुत प्रभावित हुए और धानुका जी ने उनके आग्रह पर एक विपुल धनराशि सहित यह सुसज्जित अस्पताल राज्य सरकार को दे दिया। पर यह नहीं की उसे राजकीय अस्पताल बनाकर अपने हाल पर छोड़ दें व भूल जाएं। हर वर्ष व्यवस्थाओं पर अपनी ओर से लाखों रूपये खर्च करने के अलावा सन् 1987 में 10 लाख रूपये लगाकर अंतरंग चिकित्सालय (इनडोर) की 20 शैयाएं और बढ़वाई। सन् 1997 में पुन: 20 लाख रूपये लगाकर एक पूरा अलग विंग, डॉक्टरों के कक्ष व 20 शैयाओं की व्यवस्था करवाई।
भारतीय संस्कृति के अनन्य पोषक श्री धानुका परम मातृ भक्त हैं। मातृदेवो भव: पितृ देवो भव: उनके लिए मात्र उदघोष नहीं, अनुशीलन है। असर नहीं आत्मा है। जिनके गोद चले गए उस मां कृष्णा देवी की स्मृति में अस्पताल बनाया तो जन्मदात्री मां की स्मृति में अस्पताल के सामने ही एक सुंदर-उपयोगी धर्मशाला 'श्रीमती मिन्नीदेवी हनुमानप्रसाद धानुका धर्मशाला' का निर्माण 1984 में रोगियों के साथ आने वाले परिवारजनों की सुविधा हेतु करवाया।
श्री धानुका अच्छे समाज सेवी हैं तो कुशल संगठक भी। आम आदमी से लेकर बड़े उद्योगपति तक इनका सम्मान करते हैं, सलाह मानते हैं। अग्रसेन भवन के लिए जगह की बात आई, तो आपने कलकता में सेठ श्री नंदलाल जी भौतिका को अपनी जगह समाज को अर्पित करने के लिए तैयार किया व समाज के नाम रजिस्ट्री करवा दी। धन संग्रह तो करवाया ही, अपनी तरफ से भी 5,50,000 रूपये प्रदान किए। आज उसी जगह उच्च स्थापत्य कला का प्रतीक चित्ताकर्षण, नयनाभिराम, संपूर्ण सुविधाओं से युक्त श्री अग्रसेन भवन का निर्माण हुआ, एक सपना साकार हुआ।
श्री धानुका को इतने से ही संतोष नहीं हुआ। वे दूर तक की सोचते हैं। इस भवन के साथ अन्य कई सुविधाओं के लिए एक अतिथि गृह, पाकशाला, जेनरेटर व जेनरेटर कक्ष तथा गैरेज आदि की जरूरत को समझते हुए समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ फतेहपुर के श्री रामावतार रामसीसरिया से कहा , जिन्होंने इनके आग्रह को मानते हुए बिना एक क्षण के विलम्बर के यह सब काम संपूर्ण रूप से अपने व्यय पर कराने की स्वीकृति देते हुए काम करवाया। आपका यह चुम्बकीय व्यक्तित्व ही है।
श्री राधेश्यामजी धानुका न केवल अपने व्यापार में दक्ष हैं वरन भारत के गिने-चुने व्यक्तियों में आपकी गणना होती है। सन् 1968 से आज तक आप निरंतर भारत सरकार के जवाहरातों के मूल्यांकनकर्ता हैं। जटिल से जटिल मूल्यांकनों को पूरी दक्षता से करते हैं तथा पूर्वी अंचल में तो वे इस क्षेत्र के बेजोड़ व्यक्ति हैं। इनकी विश्वसनीयता इतनी है कि 1992 से 1996 तक कवे डायमंड मर्चेण्ट एसोसिएशन, कलकता के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। 1992 से आप जौहरी बाजार धर्मकांटा एसोसिएशन, कलकता के सेक्रेटरी हैं।
आपके कलकता, बम्बई, सूरत में जवाहरातों के प्रतिष्ठान हैं और इस मामले में बड़े भाग्यशाली हैं कि उनके दो पुत्र हैं और दोनों ही जवाहरात के मामले में अपना सानी नहीं रखते। दोनों भारत सरकार के पंजीकृत व अनुमोदित मूल्यांकनकर्ता है। बड़े श्री अरूण जहां कलकता को काम संभालते हैं वहीं छोटे श्री राजेन्द्र बंबई तथा सूरत का। दोनों ही वाणिज्य स्नातक हैं। पितृभक्ति इतनी कि पिता का एक इशारा उनके लिए जीवन की सर्वाधिक महत्व की बात बन जाती है। श्री धानुका के आदर्श उनकी वाणी में ही नहीं कर्म में भी कूट-कूटकर भरे हैं।
करोड़ों रूपये जनसेवा में दान करने वाले इस करोड़पति सेठ ने अपने सुंदर व सुयोग्य पुत्रों को विवाह अत्यंत सादगी व साधारण ढंग से किया ही अपितु एक पैसा भी दहेज में न लेकर समाज के सामने एक अनुकरणीय उदाहरण भी दिया है।
मस्तमौला धानुका की सबसे बड़ी शक्ति उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मैना देवी, नाम के अनुसार ही बहुत मधुरभाषिणी, अत्यंत सरल स्वभाव की धार्मिक महिला है। अपने पति की दु:ख-सुख की संगिनी तो हैं ही, उनकी धर्मपरायणता व दानशीलता की अभिवृद्धि की मूल प्रेरणा भी।
(साभार: अग्र-सौरभ, ,द्वितीय पुष्प, 1998)
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नरेन्द्र कुमार
धानुका
धानुका
नरेन्द्रकुमार धानुका को फतेहपुर नगर में साहित्यानुरागी के रूप में जाना जाता है। वे अधिकांश कलकता प्रवास पर रहते हैं, पर जब भी उनका आगमन फतेहपुर होता है- वे साहित्य प्रेमियोंको सम्मानित करने जैसे कार्यों में जुट जाते हैं। उनकी साहित्य रचयिताओं के प्रति अनुरक्ति उल्लेखनीय रही है। वे स्वयं भी साहित्य कर्म से जुड़े रहे हैं। उनके लेख, कहानियां एवं काव्य रचनाएं कितनी ही पत्र-पत्रिकाओं और स्मारिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। साहित्यानुराग की भांति ही उनका एक और अनुराग है- वो है गो भक्ति। फतेहपुर की पिंजरापोल को कई वर्षों महामंत्री के रूप में आपके दिशा-निर्देशों का लाभ प्राप्त हुआ।वे स्वयं तो गोधन संरक्षण-संवर्द्धन क्षेत्र में काम कर ही रहे हैं- साथ ही अपने परिचितजनों को भी बहुत प्रभावकारी ढंग से गोधन परिपालन के लिए प्रेरित करते हैं।
धानुका जी का जन्म श्रावण शुक्ला अष्ठमी, विक्रमी संवत 1993 को हुआ। अठारह वर्षों तक फतेहपुर में शिक्षा ग्रहण की, तदुपरांत व्यवसाय के लिए कलकता प्रवास पर चले गए। बचपन से ही धानुकाजी की अभिरूचियां सीमित-सी थीं। प्रमुख रूचि पुस्तकों को पढ़ने में थी। थोड़ा समय खेलकूद में बीताते। यहां चमडि़या कॉलेज में पढ़ते समय वाद-विवाद प्रतियोगिताएं, कवि-सम्मेलन तथा साहित्य संगोष्ठियों में भाग लिया। अनेक खेलों में भी कॉलेज का प्रतिनिधित्व किया।
पढ़ने के समय से ही धानुकाजी कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। कठिन गणितीय सवालों को आप खेल-खेल में ही हल कर दिया करते थे। गणितीय दक्षता का ही परिणाम है कि आज भी उन्हें हिसाब-किताब करने में केलकुलेटर की आवश्यकता नहीं होती।
सरल एवं उदारमना धानुकाजी की व्यायाम-प्राणायाम में आत्यंतिक रूचि रही है। यही कारण है कि योग-प्राणायाम और सूर्य नमस्कार उनकी प्रतिदिन की दिनचर्या मं शामिल है।
साहित्यिक अभिरूचि के अंतर्गत ही अापने अनेक मंचों से भाषण एवं धार्मिक-आध्यात्मिक विषयों पर प्रवचन दिये हैं।
अनेक समारोहों में आपने मुख्य वक्ता, मुख्य अतिथि और अध्यक्ष जैसे गरिमापूर्ण पद प्राप्त हुए हैं। मातृभाषा राजस्थानी एवं राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति आपका समान रूप से लगाव रहा है। प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन, नागपुर तथा अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के रांची अधिवेशन में पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधि के रूप में हिस्सेदारी निभाई। अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के तो आप आजीवन सदस्य हैं। आध्यात्मिक रूचि के चलते दस दिवसीय विपश्यना ध्यान शिविर में कठोर तप साधना की।
धानुकाजी का कितनी ही संस्थाओं से गहन जुड़ाव रहा है। वे राजस्थान बाल सेवा सदन, फतेहपुर, राजस्थान पिंजरापोल सोसायटी के महामंत्री रहे। राजस्थान सेवा समिति कलकात के संस्थापक सदस्य, श्री अग्रसेन सेवा समिति फतेहपुर, शेखावाटी मंच कलकता, अर्चना साहित्यिक संस्था कलकता आदि के आप विशिष्ट सदस्य रहे हैं।
फतेहपुर के सरस्वती पुस्तकालय से आपका जुड़ाव जगविख्यात है।
नरेन्द्रजी के पिताजी श्री बजरंगलाजी जी धानुका सरलमना उदार व्यक्ति थे। उनकी धार्मिक और साधू प्रवृति का भरपूर प्रभाव नरेन्द्रजी पर भी पड़ा। बचपन से ही वेद-गीता, रामायण, भागवत जैसे श्रेष्ठ धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन में आपकी रूचि रही है। भजन-गायन में भी आपकी रूचि कन नहीं है। आपकी माताश्री बसंतीदेवी धानुका से यह प्रवृति आपको विरासत में मिली।
छात्र जीवन में आप पर आदर्श शिक्षक रामबली उपाध्याय, गुलजारीलाल पांडेय, प्यारेलाल गुप्ता, रामगोपाल वर्मा तथा रमेशचंद्र गुप्ता का गहरा प्रभाव पड़ा। राष्ट्रीय कवि मैथिलीशरण गुप्त, दिनकर, प्रेमचंद, भीष्म साहनी, शिवानी आदि रचनाकार आपके प्रिय लेखक हैं।
समय-समय पर आपने फतेहुपर क्षेत्र के कवि लेखकों को अपनी पुस्तकें प्रकाशित करवाने में सहयोग किया है।
अप्रेल, 1991 में आपने पंचवटी उद्यान में भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया। फतेहपुर में बड़ के बालाजी के प्राचीन मंदिर के सभा मण्डप का जीर्णोद्धार एवं पार्श्व में राम दरबार विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा करवाई।
कलकता के श्याम कुंज कॉम्पलेक्स में शिव हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया, वहीं फतेहपुर के अनेक धार्मिक स्थलों पर कई भांति के निर्माण तथा मरम्मत आदि के कार्य करवाये।
आप धानुका सेवा ट्रस्ट के माध्यम से भी अनेक सेवा कार्यों को अंजाम देते रहे हैं। यह गति तीव्र से तीव्रतर होती ही जा रही है।
पुरूषोत्तम धानुका का फतेहपुर-शेखावाटी के श्री काशीप्रसाद धानुका के घर आश्विन कृष्णा 13, विक्रम संवत 2020 तद् अनुसार 16 सितम्बर, 1963 को जन्म हुआ।
जन्म के दस साल बाद ही आपके पिताजी देवलोक गमन हो गए। भाई श्री शिवशंकर धानुका के संरक्षण में आपने शिक्षा-दीक्षा ली।
आपका 16 नवम्बर, 1984 को लाडनू के श्री ब्रह्मदत्तजी पंसारी की पुत्री कविता से विवाह हुआ। आपके 4 पुत्रियां व 1 पुत्र हुए।
आपने सन् 1997 में सार्वजनिक रासलीला महोत्सव समिति, फतेहपुर-शेखावाटी की स्थापना की। आपके द्वारा ही संचालित श्री रामलीला और रासलीला का मंचन हर साल श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर सभागार एव अन्य स्थानों पर बराबर होता है। जिसमें सहस्रों दर्शक शामिल होते हैं। यह कार्यक्रम हर साल भाद्रपद माह में 3-4 हफ्ते चलता है।
धानुका गेस्ट हाऊस की ऊपरी मंजिल का पूरा निर्माण भी आपकी देखरेख में संपन्न हुआ है।
सन् 2004 में आपने फतेहपुर कपड़ा व्यापार संघ में महामंत्री का पद भार भी आपने ग्रहण किया।
आपने गोटा एवं कपड़ा व्यापार से आर्थिक उन्नति की। वर्तमान में आपका पुत्र मधुसूदन धानुका व्यापार को नये आयाम दे रहा है।
मृदुभाषी एवं मिलनसार श्री पुरूषोत्तम धानुका को सनद्य 2006 में श्री नरेन्द्रकुमार धानुका व श्री राधेश्याम धानुका ने अपने साथ 'धानुका सेवा ट्रस्ट' का ट्रस्टी बनाकर गुरूतर जिम्मेदारी प्रदान की।
श्री पुरूषोत्तम धानुका सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान रखते हैं और सदैव गरीब हितार्थ तत्पर रहते हैं।
धानुका सेवा ट्रस्ट के माध्यम से आपकी सेवाओं का विस्तार एक मायने में पुण्य का विस्तार है।
धानुका जी का जन्म श्रावण शुक्ला अष्ठमी, विक्रमी संवत 1993 को हुआ। अठारह वर्षों तक फतेहपुर में शिक्षा ग्रहण की, तदुपरांत व्यवसाय के लिए कलकता प्रवास पर चले गए। बचपन से ही धानुकाजी की अभिरूचियां सीमित-सी थीं। प्रमुख रूचि पुस्तकों को पढ़ने में थी। थोड़ा समय खेलकूद में बीताते। यहां चमडि़या कॉलेज में पढ़ते समय वाद-विवाद प्रतियोगिताएं, कवि-सम्मेलन तथा साहित्य संगोष्ठियों में भाग लिया। अनेक खेलों में भी कॉलेज का प्रतिनिधित्व किया।
पढ़ने के समय से ही धानुकाजी कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। कठिन गणितीय सवालों को आप खेल-खेल में ही हल कर दिया करते थे। गणितीय दक्षता का ही परिणाम है कि आज भी उन्हें हिसाब-किताब करने में केलकुलेटर की आवश्यकता नहीं होती।
सरल एवं उदारमना धानुकाजी की व्यायाम-प्राणायाम में आत्यंतिक रूचि रही है। यही कारण है कि योग-प्राणायाम और सूर्य नमस्कार उनकी प्रतिदिन की दिनचर्या मं शामिल है।
साहित्यिक अभिरूचि के अंतर्गत ही अापने अनेक मंचों से भाषण एवं धार्मिक-आध्यात्मिक विषयों पर प्रवचन दिये हैं।
अनेक समारोहों में आपने मुख्य वक्ता, मुख्य अतिथि और अध्यक्ष जैसे गरिमापूर्ण पद प्राप्त हुए हैं। मातृभाषा राजस्थानी एवं राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति आपका समान रूप से लगाव रहा है। प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन, नागपुर तथा अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के रांची अधिवेशन में पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधि के रूप में हिस्सेदारी निभाई। अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के तो आप आजीवन सदस्य हैं। आध्यात्मिक रूचि के चलते दस दिवसीय विपश्यना ध्यान शिविर में कठोर तप साधना की।
धानुकाजी का कितनी ही संस्थाओं से गहन जुड़ाव रहा है। वे राजस्थान बाल सेवा सदन, फतेहपुर, राजस्थान पिंजरापोल सोसायटी के महामंत्री रहे। राजस्थान सेवा समिति कलकात के संस्थापक सदस्य, श्री अग्रसेन सेवा समिति फतेहपुर, शेखावाटी मंच कलकता, अर्चना साहित्यिक संस्था कलकता आदि के आप विशिष्ट सदस्य रहे हैं।
फतेहपुर के सरस्वती पुस्तकालय से आपका जुड़ाव जगविख्यात है।
नरेन्द्रजी के पिताजी श्री बजरंगलाजी जी धानुका सरलमना उदार व्यक्ति थे। उनकी धार्मिक और साधू प्रवृति का भरपूर प्रभाव नरेन्द्रजी पर भी पड़ा। बचपन से ही वेद-गीता, रामायण, भागवत जैसे श्रेष्ठ धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन में आपकी रूचि रही है। भजन-गायन में भी आपकी रूचि कन नहीं है। आपकी माताश्री बसंतीदेवी धानुका से यह प्रवृति आपको विरासत में मिली।
छात्र जीवन में आप पर आदर्श शिक्षक रामबली उपाध्याय, गुलजारीलाल पांडेय, प्यारेलाल गुप्ता, रामगोपाल वर्मा तथा रमेशचंद्र गुप्ता का गहरा प्रभाव पड़ा। राष्ट्रीय कवि मैथिलीशरण गुप्त, दिनकर, प्रेमचंद, भीष्म साहनी, शिवानी आदि रचनाकार आपके प्रिय लेखक हैं।
समय-समय पर आपने फतेहुपर क्षेत्र के कवि लेखकों को अपनी पुस्तकें प्रकाशित करवाने में सहयोग किया है।
अप्रेल, 1991 में आपने पंचवटी उद्यान में भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया। फतेहपुर में बड़ के बालाजी के प्राचीन मंदिर के सभा मण्डप का जीर्णोद्धार एवं पार्श्व में राम दरबार विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा करवाई।
कलकता के श्याम कुंज कॉम्पलेक्स में शिव हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया, वहीं फतेहपुर के अनेक धार्मिक स्थलों पर कई भांति के निर्माण तथा मरम्मत आदि के कार्य करवाये।
आप धानुका सेवा ट्रस्ट के माध्यम से भी अनेक सेवा कार्यों को अंजाम देते रहे हैं। यह गति तीव्र से तीव्रतर होती ही जा रही है।
(साभार : अग्रसौरभ, तृतीय पुष्प-2000)
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पुरूषोत्तम धानुका का फतेहपुर-शेखावाटी के श्री काशीप्रसाद धानुका के घर आश्विन कृष्णा 13, विक्रम संवत 2020 तद् अनुसार 16 सितम्बर, 1963 को जन्म हुआ।
जन्म के दस साल बाद ही आपके पिताजी देवलोक गमन हो गए। भाई श्री शिवशंकर धानुका के संरक्षण में आपने शिक्षा-दीक्षा ली।
आपका 16 नवम्बर, 1984 को लाडनू के श्री ब्रह्मदत्तजी पंसारी की पुत्री कविता से विवाह हुआ। आपके 4 पुत्रियां व 1 पुत्र हुए।
आपने सन् 1997 में सार्वजनिक रासलीला महोत्सव समिति, फतेहपुर-शेखावाटी की स्थापना की। आपके द्वारा ही संचालित श्री रामलीला और रासलीला का मंचन हर साल श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर सभागार एव अन्य स्थानों पर बराबर होता है। जिसमें सहस्रों दर्शक शामिल होते हैं। यह कार्यक्रम हर साल भाद्रपद माह में 3-4 हफ्ते चलता है।
धानुका गेस्ट हाऊस की ऊपरी मंजिल का पूरा निर्माण भी आपकी देखरेख में संपन्न हुआ है।
सन् 2004 में आपने फतेहपुर कपड़ा व्यापार संघ में महामंत्री का पद भार भी आपने ग्रहण किया।
आपने गोटा एवं कपड़ा व्यापार से आर्थिक उन्नति की। वर्तमान में आपका पुत्र मधुसूदन धानुका व्यापार को नये आयाम दे रहा है।
मृदुभाषी एवं मिलनसार श्री पुरूषोत्तम धानुका को सनद्य 2006 में श्री नरेन्द्रकुमार धानुका व श्री राधेश्याम धानुका ने अपने साथ 'धानुका सेवा ट्रस्ट' का ट्रस्टी बनाकर गुरूतर जिम्मेदारी प्रदान की।
श्री पुरूषोत्तम धानुका सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान रखते हैं और सदैव गरीब हितार्थ तत्पर रहते हैं।
धानुका सेवा ट्रस्ट के माध्यम से आपकी सेवाओं का विस्तार एक मायने में पुण्य का विस्तार है।
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