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श्री सरस्‍वती सेवा पुरस्‍कार-2008




कहानी, कविता, उपन्यास, समीक्षा, नाटक, शोध आदि सभी विधाओं से राजस्थानी व हिंदी साहित्य को समृद्ध करने वाले डॉ. गोरधन सिंह शेखावत आज भी मायड़ भाषा की सेवा में लगे हुए हैं। डॉ. शेखावत का जन्म राजस्थान के झुंझनूं जिले के गुढ़ा गांव में 10 अप्रैल, 1941 को हुआ। हिंदी साहित्य में एम.ए. और पीएच.डी. करने के बाद श्री शेखावत सेठ जी.बी. कॉलेज नवलगढ, बिट्स पिलानी, बी.डी. तोदी कॉलेज लक्ष्मणगढ आदि संस्थानों में व्याख्याता रहे। सेवानिवृत्ति के बाद सीकर के श्रीकृष्ण सत्संग बालिका महाविद्यालय में सन 2001 से 2007 तक प्राचार्य रहे। आजकल इसी कॉलेज में बतौर निदेशक सेवारत श्री शेखावत मूलत: कवि, नाटककार, समीक्षक हैं। 1965 से शुरू हुआ उनके सृजन की सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से आपकी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं।
किरकर, पनजीमारू, खुद सूं खुद री बातां आदि काव्य संग्रहों के जरिए आधुनिक राजस्थानी कविता के क्षेत्र में विशिष्ट पहचान कायम करने वाले श्री शेखावत की विभिन्न विधाओं में दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें राजस्थानी नाटक 'तीसमार खां`, 'बस्तीराम`, राजस्थानी उपन्यास 'एक फौजी शहीद`, समीक्षा पुस्तक 'भरत और अरस्तू के नाट्य तत्वों की तुलना`, 'नयी कहानी: उपलब्धि और सीमाएं`, 'मोहन राकेश की कथायात्रा`, 'काव्यांग परिचय`, 'काव्य निरूपण` और 'निबंध सागर` के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं। राजस्थानी साहित्य रो इतिहास (इतिहास), नेकरासोव (अनुवाद), शेखावाटी साहित्य संदर्भ कोष, शेखावाटी के साहित्य का योगदान, ओलखाण, समर्थ रचनाकार डॉ उदयवीर शर्मा, डॉ सहल: व्यक्ति एवं सृजन, शिक्षाविद गिरधारी सिंह शेखावत, शेखावाटी के साहित्यकार, कच्छवाहों की कुलदेवी जमवाय माता आदि पुस्तकें भी श्री शेखावत के सृजन एवं शोधधर्मी व्यक्तित्व एवं कृतित्व की साख भरती हैं। आपने बतलावण, अंतराल, गोरबंद, कथायन, समीक्षायन, जागती जोत आदि पत्रिाकाओं का संपादन कर इन्हें एक नयी दिशा दी है।
आपने राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर की संचालिका एवं कार्यकारिणी में सदस्य, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी में सदस्य, शेखावाटी साहित्य, कला एवं संस्कृतिक अकादमी, शेखावाटी कला परिषद, शेखावाटी संवाद आदि संस्थाओं में सचिव पदों पर रहकर साहित्य, कला और संस्कृति के विकास में उल्लेखनीय कार्य किया है।
साहित्यिक एवं सामाजिक योगदान के लिए आपको राजस्थान रत्नाकर (1988), शेखावाटी आंचलिक साहित्यकार सम्मान (1986), राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी पुरस्कार (1991), अमृता पुजारी राजस्थानी साहित्य पुरस्कार (1989), हिंदी साहित्यकार सम्मान (2005), कर्णधार सम्मान सहित दर्जनों पुरस्कार एवं सम्मान मिल चुके हैं।
सहज और सरल व्यक्तित्व के धनी डॉ. शेखावत को राजस्थानी भाषा और साहित्य के विकास में अद्भुत योगदान के लिए वर्ष 2008 का श्री सरस्वती सेवा सम्मान प्रदान करते हुए हमें गर्व है।

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