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बसंती देवी धानुका युवा साहित्‍यकार पुरस्‍कार-2009









सशक्त कथाकार श्री दुलाराम सहारण आज राजस्थानी साहित्य में किसी परिचय के मोहताज नहीं रह गए हैं। समूचे राजस्थान के साहित्यकारों से घुलमिल चुके दुलाराम सहारण को बसंती देवी धानुका युवा पुरस्कार मिलना इस पुरस्कार की सार्थकता साबित करने के साथ-साथ स्वयं पुरस्कार को पुरस्कृत करना है।
श्री सहारण का जन्म चूरू जिले की तारानगर तहसील के गांव भाड़ंग में मां श्रीमती जहरो देवी एवं पिता श्री मनफूलराम सहारण के घर 15 सितंबर 1976 को हुआ। बचपन से ही पढ़ाई के साथ-साथ ही पत्र-पत्रिकाओं में अपनी रूचि के बलबूते दुलाराम साहित्य जगत में अपनी पहचान बनाने लग गए और साहित्य विशेषकर राजस्थानी साहित्य की त्रि-विध (लेखन, संपादन व प्रकाशन) सेवा कर साहित्य जगत में छा गए।
आपकी उच्च प्राथमिक कक्षा तक पढ़ाई ग्राम भाड़ंग में हुई और उसके बाद माध्यमिक तक की पढाई ग्राम धीरवास और उच्च माध्यमिक तक की पढाई तारानगर में हुई। उसके बाद श्री सहारण चूरू के लोहिया महाविद्यालय में प्रविष्ट हुए, जहां से एम.ए., एलएल. बी. की डिग्री प्राप्त की। इस दौरान वे लोहिया महाविद्यालय में छात्रसंघ के महासचिव तथा अध्यक्ष भी रहे।
आपकी प्रथम बाल कहानी 'खुल गई डिबिया` बालहंस के अप्रैल (प्रथम), 1993 अंक में छपी तो पहली बाल कविता 'नीड़` भी दो माह बाद बालहंस के ही जून (प्रथम), 1993 अंक में छपी। उसके बाद सहारण ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और साहित्य जगत में सफलता की सीढ़ियां चढते गए।
राजस्थानी साहित्य से आपका लगाव शुरू से ही रहा। जागती जोत के दिसंबर, 1995 अंक में आपकी प्रथम राजस्थानी कहानी 'समै बदलग्यो` प्रकाशित हुई। राजस्थानी बाल साहित्य में आपका कहानी संग्रह 'क्रिकेट रो कोड` तथा 'चांदी की चमक' और उपन्यास 'जंगळ दरबार` छप चुके हैं, वहीं मानव समाज में व्याप्त कुरीतियों, करतूतों एवं दम तोड़ती मानवीय संवेदना को देखकर अंतस में उठने वाली पीड़ आपके राजस्थानी कहानी संग्रह पीड़ में अभिव्यक्त हुई है।
श्री सहारण हिंदी एवं राजस्थानी में समरूप लेखन एवं संपर्क बनाने में अग्रणी रहे। आपने प्रयास संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष होने का गौरव भी हासिल किया। हिंदी साहित्य क्षेत्र में प्रयास संस्थान के जरिए 'डॉ. घासीराम वर्मा साहित्य पुरस्कार` की स्थापना कर हिंदी साहित्य के प्रोत्साहन का आपका प्रयास स्तुत्य है।
हिंदी साहित्य लेखन व गतिविधियों में लगातार सक्रियता के बावजूद आपका राजस्थानी से मोह छुपाये नहीं छुपता। काफी पहले रावत सारस्वत स्मृति संस्थान की स्थापना कर 'रावत सारस्वत साहित्य पुरस्कार` प्रारंभ कर चुके श्री दुलाराम आज राजस्थानी साहित्य एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के सफल आयोजक होने के साथ-साथ विविधि राजस्थानी पुरस्कारों की स्थापना के प्रेरणा स्रोत बन चुके हैं ।
आपने विविध स्मारिकाओं के सफल संपादन के साथ-साथ राजस्थानी साहित्य जगत के ख्यातनाम साहित्यकारों की कहानियों से सु-सज्जित कहानी संग्रह 'बात न बीती` का सफल एवं प्रशंसनीय संपादन कर अपनी क्षमता एवं योग्यता का लोहा मनवाया है।
साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के वर्तमान राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल में सबसे कम उम्र का सदस्य बनने का गौरव श्री दुलाराम को हासिल हुआ है, जो साहित्य जगत में युवा पीढी की ओर से जोरदार दस्तक तो है ही, साथ ही युवा पीढी के निर्भीक होकर आगे बढने के लिए राह प्रशस्त करने वाली प्रेरणा भी है।
आपकी राजस्थानी कहानी 'चर-भर` राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर के भत्‍तमाल जोशी पुरस्कार से पुरस्कृत हो चुकी है। आपको ज्ञान फाउण्डेशन, बीकानेर की ओर से ज्ञान-सम्मान तथा नेहरू युवा केंद्र, चूरू की ओर से श्रेष्ठ युवा पुरस्कार भी मिल चुका है।
आप द्वारा स्थापित एकता प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तकों ने साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में चूरू की पैठ बढाई है, वहीं आपके प्रयासों के चलते इंटरनेट पर भी राजस्थानी साहित्य छाया हुआ है। अपनी प्रयोगधर्मी ब्लॉगिंग के जरिए आपने एक सक्रिय ब्लॉगर के रूप में अपनी पहचान बनाई है। आप 'राजस्‍थान ब्‍लॉगर्स एसोशिएशन' के प्रदेशाध्‍यक्ष भी हैं।
आकाशवाणी के जरिए नियमित रूप से अपनी वाणी का मिठास जन-जन तक पहुंचाने वाले दुलाराम बहुआयामी व्यक्तित्व और कर्तृत्व के धनी हैं। ख्यातनाम पत्रिकाओं में छपने वाले एवं साहित्य जगत में युवा पीढी का नेतृत्व कर रहे श्री सहारण को 'बसंती देवी धानुका युवा साहित्‍यकार पुरस्कार-2009` दिया जाना पुरस्कार के सम्मान की बात है।
हम आशा करते हैं कि श्री दुलाराम सहारण के नेतृत्व में राजस्थान की युवा पीढ़ी राजस्थानी को नया गौरव दिलाने में सफल होगी और राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने की हमारी वर्षों पुरानी उम्मीद पूरी होगी।

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